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Free Prizdale Hindi Handwriting Contest 2025

Dear Children,
Do you love writing beautifully? Do you want to showcase your Hindi handwriting skills? Prizdale Times is excited to announce the Free Prizdale Hindi Handwriting Contest 2025.

This contest is open to students from Nursery to Class VIII, and there are exciting prizes worth Rs. 2,100/- in Prizdale Mart Gift Vouchers for the top three winners in each category!

How to Participate?

  1. Register by filling out the Google Form.
  2. Copy the below provided Hindi text neatly in your notebook.
  3. Take a clear picture of your handwritten page.
  4. Submit your entry through the Google Form before March 31, 2025.

There is no fixed date for any test. You can complete your handwriting at home or in school and submit it before the deadline.

Rules:

  • You need to write only one page. Even if the provided text is longer, just write one full page in your notebook.
  • Neatness, accuracy, and handwriting style will be considered for judging.
  • Make sure your submission is clear and readable.

So, pick up your pen, bring out your best handwriting, and participate in this wonderful contest!

For more details, email info@prizdale.com or message us on 78002 93434 (WhatsApp only).

Last date: March 31, 2025.


प्रिय बच्चों,
क्या आपको सुंदर अक्षरों में लिखना पसंद है? क्या आप अपनी हिंदी लिखावट की प्रतिभा दिखाना चाहते हैं? प्रिज़डेल टाइम्स आपके लिए मुफ़्त प्रिज़डेल हिंदी हैंडराइटिंग प्रतियोगिता 2025 लेकर आया है!

यह प्रतियोगिता नर्सरी से कक्षा 8वीं तक के सभी विद्यार्थियों के लिए खुली है, और रु. 2,100 के प्रिज़डेल मार्ट गिफ्ट वाउचर जीतने का सुनहरा मौका है!

प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए क्या करें?

  1. Google Form भरकर रजिस्ट्रेशन करें।
  2. नीचे दिए गए हिंदी पाठ को अपनी कॉपी में सुंदर अक्षरों में लिखें।
  3. अपनी हाथ से लिखी गई प्रति की साफ़ तस्वीर लें।
  4. इसे Google Form के माध्यम से 31 मार्च 2025 से पहले जमा करें।

यह कोई परीक्षा नहीं है और कोई तय तारीख नहीं है। आप अपनी सुविधा अनुसार घर या स्कूल में लिख सकते हैं और समय सीमा से पहले जमा कर सकते हैं।

नियम:

  • आपको सिर्फ़ एक पेज लिखना है। अगर दिया गया पाठ लंबा है, तो भी केवल एक पूरा पेज ही लिखें।
  • सुंदरता, स्पष्टता और सही लेखन शैली को जज किया जाएगा।
  • तस्वीर स्पष्ट होनी चाहिए, ताकि लिखावट साफ़ दिखे।

तो जल्दी करें, अपनी सुंदर लिखावट दिखाएं और इस मज़ेदार प्रतियोगिता में भाग लें!

अधिक जानकारी के लिए info@prizdale.com पर जाएं या 78002 93434 (सिर्फ़ व्हाट्सएप) पर संदेश भेजें।

अंतिम तिथि: 31 मार्च 2025।


गहरे जंगल के किनारे एक छोटा सा गाँव था। गाँव के लोग हमेशा जंगल में जाने से डरते थे, क्योंकि वहाँ के बड़े-बुजुर्गों का कहना था कि जंगल में एक रहस्यमयी गुफा है, जहाँ जाने वाला कभी वापस नहीं आता। लेकिन बच्चों के लिए यह डर से ज़्यादा एक रोमांचक कहानी थी।

रवि और मोहन, गाँव के दो शरारती लड़के, इस गुफा का रहस्य जानने के लिए बहुत उत्सुक थे। एक दिन, जब गाँव के सभी लोग अपने-अपने काम में व्यस्त थे, दोनों दोस्त चुपचाप जंगल की ओर चल पड़े। सूरज की रोशनी पेड़ों के घने पत्तों से छनकर आ रही थी, और चारों ओर पक्षियों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी।

थोड़ी दूर चलते ही उन्हें जंगली फूलों की खुशबू महसूस हुई और हवा ठंडी लगने लगी। वे धीरे-धीरे जंगल के अंदर बढ़ते गए। अचानक, उन्हें कुछ अजीब सा महसूस हुआ – जैसे कोई उन्हें देख रहा हो। उन्होंने इधर-उधर देखा, लेकिन कोई नजर नहीं आया। मोहन को लगा कि शायद यह उनका वहम है, लेकिन रवि ने उसके कंधे पर हाथ रखा और धीमे से फुसफुसाया, “देखो, वहाँ कुछ हिल रहा है!”

दोनों ने ध्यान से देखा, तो झाड़ियों के पीछे हलचल थी। वे डरते-डरते आगे बढ़े और झाड़ियों को हटाया। जो उन्होंने देखा, वह उनके होश उड़ाने के लिए काफी था। वहाँ एक बूढ़ा आदमी बैठा था, जिसके कपड़े फटे हुए थे और बाल बिखरे हुए थे।

बूढ़े आदमी ने डरकर कहा, “कौन हो तुम लोग?”

रवि ने हिम्मत जुटाकर पूछा, “आप यहाँ क्या कर रहे हैं?”

बूढ़े आदमी ने एक गहरी सांस ली और बताया कि वह वर्षों पहले यहाँ शिकार के लिए आया था, लेकिन रास्ता भटक गया और गाँव वापस नहीं जा पाया। उसने जंगल में ही अपना ठिकाना बना लिया।

रवि और मोहन ने समझदारी से काम लिया और गाँव लौटकर बुजुर्गों को सब कुछ बताया। गाँववालों ने मिलकर उस बूढ़े आदमी को वापस लाने का इंतजाम किया। इस तरह, जंगल का रहस्य खुल गया, और गुफा की डरावनी कहानी का अंत हुआ।


बहुत समय पहले की बात है। एक बड़े राज्य पर राजा विक्रमदेव का शासन था। वे बहुत न्यायप्रिय और प्रजा के हितैषी राजा थे। उनकी राजधानी समृद्ध थी और लोग खुशहाल थे। लेकिन राजा को हमेशा यह चिंता रहती थी कि उनके बाद यह राज्य किसके हाथ में जाएगा। उनके दो पुत्र थे – राजकुमार अर्जुन और राजकुमार समर।

राजा चाहते थे कि उनका उत्तराधिकारी केवल वही बने, जो सबसे योग्य हो। उन्होंने अपने मंत्रियों से सलाह ली और एक अनोखी परीक्षा की योजना बनाई। पूरे राज्य में यह घोषणा कर दी गई कि दोनों राजकुमारों को एक विशेष कार्य सौंपा जाएगा, और जो इसे सफलतापूर्वक पूरा करेगा, वही अगला राजा बनेगा।

राजा ने दोनों पुत्रों को बुलाया और उन्हें अलग-अलग दिशाओं में यात्रा करने को कहा। उन्हें राज्य के दूर-दराज़ के गाँवों में जाकर लोगों की समस्याओं को समझना था और उन्हें हल करने का प्रयास करना था। यात्रा शुरू हो गई।

अर्जुन सीधा राज्य के सबसे अमीर नगर की ओर बढ़ा। वहाँ उसने बड़े व्यापारियों से मुलाकात की, उनकी समस्याएँ सुनीं और कई महत्वपूर्ण समझौते किए। दूसरी ओर, समर ने छोटे गाँवों की यात्रा की। उसने किसानों, मजदूरों और गरीब लोगों की समस्याएँ सुनीं और उन्हें हल करने का प्रयास किया।

जब दोनों राजकुमार अपनी यात्रा से लौटे, तो दरबार में सभी उत्सुक थे कि राजा अब क्या निर्णय लेंगे। राजा ने दोनों से उनकी यात्रा के अनुभव पूछे। अर्जुन ने बताया कि उसने राज्य के व्यापार को मजबूत करने के लिए कई समझौते किए और धन को बढ़ाने के उपाय खोजे।

फिर समर ने बताया कि उसने किसानों की समस्या सुनी, स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई की स्थिति देखी और गरीबों के लिए अन्न वितरण की व्यवस्था की।

राजा मुस्कुराए और कहा, “एक राजा की असली पहचान यह नहीं कि वह कितना धन जुटा सकता है, बल्कि यह है कि वह अपनी प्रजा के लिए क्या कर सकता है। इसलिए, मेरा उत्तराधिकारी होगा राजकुमार समर।”

अर्जुन को यह सुनकर दुःख हुआ, लेकिन उसने भी महसूस किया कि सही निर्णय लिया गया था। समर राजा बना और अपने राज्य को सच्चाई और ईमानदारी से चलाया।


गंगा किनारे बसे एक छोटे से गाँव में एक गरीब किसान रामदास रहता था। उसकी एकमात्र संतान उसकी बेटी सुनीता थी। सुनीता बहुत होशियार और मेहनती लड़की थी। वह रोज़ नदी किनारे बैठकर किताबें पढ़ती और अपने पिता के कामों में मदद करती।

एक दिन, गाँव में एक साधु महाराज आए। उन्होंने घोषणा की कि वे किसी एक गाँववाले की इच्छा पूरी करेंगे, लेकिन एक शर्त पर – जिसे भी यह वरदान चाहिए, उसे पहले एक वचन देना होगा, जिसे वह जीवन भर निभाएगा।

गाँव के लोग यह सुनकर बहुत खुश हुए और सभी अपनी-अपनी इच्छाएँ लेकर साधु के पास जाने लगे। किसी को धन चाहिए था, किसी को खेतों में अधिक फसल, तो किसी को अपने बच्चों के लिए अच्छा भविष्य। जब सुनीता और उसके पिता की बारी आई, तो साधु ने उनसे पूछा, “बताओ बेटी, तुम्हारी क्या इच्छा है?”

सुनीता ने विनम्रता से उत्तर दिया, “मुझे ज्ञान चाहिए, ताकि मैं अपने गाँव के सभी बच्चों को पढ़ा सकूँ। लेकिन आप जो भी वचन देंगे, पहले उसे सुनना चाहूंगी।”

साधु मुस्कुराए और बोले, “अगर तुम सच में ज्ञान चाहती हो, तो तुम्हें एक कठिन वचन निभाना होगा। तुम्हें न केवल खुद पढ़ना होगा, बल्कि दूसरों को भी पढ़ाने का संकल्प लेना होगा। जब तक तुम दूसरों को पढ़ाओगी, तुम्हारा ज्ञान बढ़ता रहेगा, लेकिन जैसे ही तुम केवल अपने लाभ के लिए ज्ञान रखोगी, तुम्हारा ज्ञान कम हो जाएगा।”

सुनीता ने कुछ क्षण सोचा, फिर आत्मविश्वास से कहा, “मैं यह वचन निभाने के लिए तैयार हूँ।”

साधु ने उसे आशीर्वाद दिया और गाँववालों से कहा कि सच्ची संपत्ति धन नहीं, बल्कि ज्ञान है, जो बाँटने से बढ़ता है।

समय बीतता गया और सुनीता गाँव की पहली अध्यापिका बनी। उसकी मेहनत से गाँव में शिक्षा का उजाला फैल गया, और उसका नाम पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध हो गया।

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